Thursday, April 15, 2010

इक चेहरा देखती हूँ अक्सर मैं अपने आस पास...


इक चेहरा देखती हूँ अक्सर मैं अपने आस पास
यूँ ही कभी जब अकेले में होती हूँ -
कभी छत  पर टहलते हुए ,
कभी कमरे में अकेले ही कोई गीत गुनगुनाते हुए,
और कभी किसी सूनी राह पे बस चलते हुए |
कभी कभी ऐसा लगता है के एक ही चेहरा है,
तो कभी लगता है के अलग अलग राहों पे
अलग अलग चेहरे हैं मेरे साथ
जो मुझे कह रहें हों के
मैं तुम्हारे साथ हूँ,
हर कदम पर,
जब भी किसी मुश्किल में रहो,
मैं यहीं कहीं मिल जाऊंगा..
आखिर अब तक हर मुश्किल में मुझे
कोई न कोई मिल गया था-
जिसने मेरे भागते हुए परेशान से मन के अँधेरे को दूर भगाया ...
जिसने मेरे बच्चों जैसे सवालों के जवाब दिए,
जिसने मुझे ये बताया के क्या होती है दोस्ती,
क्यों लोग भागते रहते हैं-
कभी प्यार,कभी पैसे ,कभी परिवार
और कभी बस अपने मन की ओर |

अब तक जब भी कोई उलझन थी,
जब मन अशांत रहा,
जब भी अनिश्चितताएं आयीं ,
जब भी लगा के अब आगे का रास्ता दिख न रहा हो,
जब लगा के सारी दुनिया मुझपर हँस रही है,
जब भी सोचा के कहीं मेरी दोस्ती में ही कहीं कोई कमी तो नहीं ..
जब महसूस हुआ के लोगों को मेरा अपने चुने हुए रस्ते पे चलना पसंद नहीं था,
जब भी अँधेरे में अपने तकिये में सर छुपा के आंसुओं को निकलने दिया,
जब भी कल्लोल किया,
जब हँसते हँसते भूल गयी के हंसी आई भी क्यों थी..
जब भी बचपन की बातें एकदम से ताज़ा हो उठीं,
जब गुस्सा आया-खुद पे और दुनिया पे,
तो कोई हमेशा मेरे साथ था - ऐसा लगा |
लगा जैसे ईश्वर ने किसी फ़रिश्ते को बस मेरी परेशानियों का हल ढूँढने के लिए भेजा है,
थोड़ा मैंने भी उन फरिश्तों की उलझन सुलझाई,
और कभी कभी लगा जैसे बातें सुलझने के बदले और भी उलझ गयी हों |
लेकिन जो वक़्त गुज़रा साथ में-वो वक़्त कभी भुलाया नहीं जा सकता
क्योंकि वो तो जैसे हमारे दिलों में जैसे एक अमिट छाप छोड़ गया है |
अच्छा था या बुरा - ये कह पाना मेरे सामर्थ्य के बाहर की बात है -
क्योंकि उस समय लगा जैसे इस से अच्छा कुछ भी नहीं;
मानो किसी ने आसमान से खुशियों की बारिश कर दी हो,
जिसकी बौछारों में मन के सारे दुःख अकस्मात् ही धुल गए जैसे;
लगा के बस हर एक घड़ी को समेट लूँ |
फिर बादल छंटे और निखरती हुई धूप आई और धरती पर जैसे सुनहरी चादर सी छा गयी,
ऐसी कितनी ही बारिशें मैंने देखीं ,
कितने सवेरे हुए-
हर सुबह पहले से ज्यादा खूबसूरत!
हर बार मेरे साथ थे कुछ लोग
जिनका जितना भी शुक्रिया अदा करूँ कम होगा,
क्योंकि मुझे हमेशा लगा के उन्होंने मुझे जितना दिया,
उसके मुकाबले में शायद कुछ भी नहीं लिया |

फिर ऐसा क्यों लगता है कि वो बस एक भ्रम था,
क्यों लगता है के हम बस मुसाफिरों कि तरह मिले थे ,
हर एक अपनी मंजिल की ओर अपना रास्ता बनाता हुआ,
और रास्ते में मिलते हुए लोगों को कुछ न कुछ सिखाता हुआ,
और उनसे खुद भी कुछ न कुछ सीखता हुआ |
लगता है वो सारे चेहरे भी मुझसे कहीं दूर जा रहे हैं,
और शायद फिर कभी वापस न आयें..
क्या पता शायद मुझे भूल भी जाएँ!
लेकिन मैं शायद उनमे से एक को भी न भूल पाऊँगी !
नयी जगह, नए लोग ,नए दोस्त,नया काम-
ये सब हमारे बाहरी रूप और हाव भाव को बादल सकते हैं,
लेकिन उन चेहरों में से हर एक ने मेरे सफ़र को और भी खुशनुमा और मनोरम बनाया-
मुझे जीना सिखाया,
मुझे शायद इतना बदल के रख दिया जितना कभी कोई और नहीं कर पाया!
हर एक चेहरा अब मेरा एक हिस्सा सा बन गया है-एक अटूट हिस्सा |
और शायद मैं भी हूँ उन सब में कहीं न कहीं-
वो बस इसलिए नहीं दिखाते क्योंकि इस से शायद उन्हें अपने रस्ते पे चलने में ,
और मुझे मेरे रस्ते पर चलने में कहीं कोई तकलीफ न हो |

प्यार, दोस्ती और दुश्मनी- ये सब शायद बड़े ही छिछले शब्द हैं
उस वक्त के लिए ;
क्योंकि ये सब वक़्त के साथ साथ कम भी हो सकते हैं,
भुलाए भी जा सकते हैं |
ये शब्द जैसे हर चीज़ को एक तस्वीर में बांध देते हैं;
बंध जाने से उस समय की खूबसूरती कम हो जाती है;
इसलिए मैं बस उस समय को ही अपने मन में समेट कर रख रही हूँ
जैसा भी वह था-बस वैसा ही रहेगा मेरी यादों में,
शायद यही मेरा सामर्थ्य है,
या फिर विवशता...

क्या पता किसी दिन ऐसी ही किसी अनजान लम्बी राह पर
उनमें से कोई एक चेहरा फिर कहीं मिल जाए,
और वो भी शायद बोले कि उसे भी ऐसा ही लगा जैसा मुझे लगा!
क्या पता कोई नया चेहरा किसी नयी राह पर मिले!

5 comments:

  1. the poem does teleport u to virtual world for smtime. Quite expressive :)

    ReplyDelete
  2. Very nice poem.... reminds me of my all time fav oldie....

    Maine toh khayaloon me, khwaboon ki sej sajayi hai..
    Dil ki khaali deewaroon par, ek tasveer banayi hai..
    Tasviroon pe marta hoon, waqt gujara karta hoon..
    Main kisi mehboob ki galiyoon ka, koi aashiq badnaam nahi.......

    janeman janeman....janeman kisi ka naam nahi ...fir bhi yeh naam ..hotho pe na ho ...aisi koi subah nahi ..hmm..shaam nahiiiiiii...........

    ReplyDelete
  3. @ Illusionist....very apt lines indeed...which song is it though??

    ReplyDelete